इंदिरा एकादशी हिंदू धर्म में अत्यधिक महत्वपूर्ण एकादशी व्रत है। यह पितृ पक्ष के दौरान आती है और पितरों की शांति और मोक्ष प्राप्ति के लिए इसका व्रत किया जाता है। इंदिरा एकादशी भगवान विष्णु की पूजा और पितरों के उद्धार के लिए विशेष मानी जाती है। इसे विशेष रूप से पितृ पक्ष में इसलिए महत्व दिया जाता है, क्योंकि इसे करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है और व्रती को पुण्य फल मिलता है।
इंदिरा एकादशी का महत्व:
इंदिरा एकादशी व्रत का विशेष महत्व पितृपक्ष (श्राद्ध पक्ष) में होता है, जो अपने पितरों को मोक्ष दिलाने और उनके लिए पुण्य अर्जित करने के लिए किया जाता है। हिंदू धर्म में पितरों की आत्मा की शांति के लिए पितृपक्ष में दान-पुण्य और श्राद्ध किया जाता है, और इंदिरा एकादशी व्रत इन कार्यों में महत्वपूर्ण स्थान रखता है।
इस व्रत का पालन करने से व्यक्ति के पितृ दोष दूर होते हैं, और उनके पूर्वजों को मुक्ति प्राप्त होती है। यह व्रत भगवान विष्णु को समर्पित होता है, और मान्यता है कि इससे पूर्वजों को वैकुंठ में स्थान मिलता है।
इंदिरा एकादशी 2024 में कब है ?
तिथि: 28 सितंबर 2024, शनिवार
एकादशी प्रारंभ: 27 सितंबर 2024 को रात 11:35 बजे
एकादशी समाप्त: 28 सितंबर 2024 को रात 11:28 बजे
पारण का समय: 29 सितंबर 2024 को सुबह 06:11 से 08:40 बजे तक
Table of Contents
व्रत की विधि:
- स्नान और संकल्प: सुबह जल्दी उठकर स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहनें और इंदिरा एकादशी व्रत का संकल्प लें।
- भगवान विष्णु की पूजा: विष्णु जी की प्रतिमा या चित्र के सामने दीपक जलाएं, धूप-दीप और फूल अर्पित करें। फिर विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें।
- निर्जला या फलाहार व्रत: इस दिन निर्जल रहना या केवल फलाहार करना शुभ माना जाता है। भोजन का त्याग कर भक्त भगवान की सेवा में लीन रहते हैं।
- रात्रि जागरण: इस दिन रात्रि जागरण करने का विशेष महत्व है। भगवान विष्णु के भजन और कीर्तन करते हुए रात बिताना पुण्यकारी माना जाता है।
- पारण: अगले दिन द्वादशी तिथि को सूर्य उदय के बाद पारण करना चाहिए, जिसमें व्रत खोला जाता है।
इंदिरा एकादशी की पौराणिक कथा:
सतयुग में महिष्मति नगरी नामक एक सुंदर और विशाल नगर था, जहाँ पर राजा इंद्रसेन राज्य करते थे। राजा बहुत धर्मनिष्ठ, न्यायप्रिय और भगवान विष्णु के परम भक्त थे। उनके राज्य में सुख-शांति और समृद्धि थी। राजा के तीनों लोकों में यश का विस्तार था और वे अपनी प्रजा के प्रति भी बड़े दयालु थे। राजा की एक विशेषता यह भी थी कि वे नियमित रूप से भगवान विष्णु की पूजा करते थे और एकादशी व्रत का पालन करते थे।
नारद मुनि का आगमन:
एक दिन नारद मुनि भगवान विष्णु के लोक से पृथ्वी पर भ्रमण करते हुए राजा इंद्रसेन के महल में पहुँचे। राजा ने उनका सादर स्वागत किया और उन्हें सिंहासन पर बैठाया। इसके बाद राजा ने उनसे आने का कारण पूछा। नारद मुनि ने राजा इंद्रसेन को बताया कि वे एक विशेष संदेश लेकर आए हैं। नारद मुनि ने कहा:
“हे राजन! मैं तुम्हारे पिता के बारे में बताने आया हूँ। वे स्वर्गलोक में नहीं, बल्कि यमलोक में हैं और वहाँ कष्ट सहन कर रहे हैं। जब मैंने उनसे मिलने के लिए यमलोक का दौरा किया, तो तुम्हारे पिता ने मुझे पहचान लिया और मुझे बताया कि वे अपने पापों के कारण यमलोक में हैं। उन्होंने मुझसे अनुरोध किया कि मैं उनके पुत्र, राजा इंद्रसेन, को इंदिरा एकादशी व्रत करने के लिए कहूँ। इस व्रत के प्रभाव से वे यमलोक से मुक्त होकर स्वर्गलोक में स्थान प्राप्त करेंगे।”
इंदिरा एकादशी व्रत की विधि:
नारद मुनि ने राजा इंद्रसेन को विस्तार से इंदिरा एकादशी व्रत की विधि बताई। नारद मुनि ने कहा कि इस व्रत का पालन करने से न केवल तुम्हारे पिताजी को मुक्ति मिलेगी, बल्कि तुम्हें भी धर्म और मोक्ष की प्राप्ति होगी। नारद मुनि के उपदेश को सुनकर राजा ने व्रत करने का निश्चय किया और पितरों के उद्धार के लिए इंदिरा एकादशी व्रत का पालन करने का संकल्प लिया।
व्रत का पालन:
राजा इंद्रसेन ने नारद मुनि द्वारा बताई गई विधि के अनुसार व्रत किया। व्रत के दिन राजा ने पहले स्नान करके शुद्ध वस्त्र धारण किए, भगवान विष्णु की पूजा की, और पूरे दिन निर्जला उपवास रखा। रातभर भगवान विष्णु के नाम का जाप और कीर्तन करते हुए जागरण किया। अगले दिन, द्वादशी तिथि को व्रत का पारण किया।
राजा के पिता का उद्धार:
इंदिरा एकादशी व्रत के प्रभाव से राजा इंद्रसेन के पिता यमलोक से मुक्त हो गए और उन्हें स्वर्गलोक में स्थान प्राप्त हुआ। राजा ने न केवल अपने पिता का उद्धार किया, बल्कि स्वयं भी महान पुण्य अर्जित किया। इस व्रत के प्रभाव से राजा के राज्य में भी समृद्धि और शांति बनी रही, और अंततः वे भी विष्णु लोक को प्राप्त हुए।
कथा का संदेश:
इंदिरा एकादशी व्रत की यह कथा इस बात पर बल देती है कि पितरों की आत्मा की शांति और मोक्ष प्राप्ति के लिए इस व्रत का पालन करना अत्यंत पुण्यकारी है। इसके साथ ही यह व्रत व्रती के पापों का नाश करता है और उसे भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है।
इंदिरा एकादशी व्रत पितरों की मुक्ति और स्वयं के लिए मोक्ष की प्राप्ति के लिए अत्यंत लाभकारी है। यह व्रत न केवल पितरों की आत्मा की शांति के लिए किया जाता है, बल्कि इसे करने से भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है।