धन और समृद्धि प्राप्त करने के लिए श्री सूक्त का पाठ नियमित रूप से करना चाहिए, श्री सूक्त की रचना प्राचीन वैदिक काल में हुई है, और यह ऋग्वेद का एक महत्वपूर्ण भाग है। इसकी रचना किसी एक व्यक्ति या ऋषि द्वारा नहीं की गई थी, बल्कि यह वेदों के अन्य मंत्रों की तरह ही ऋषियों द्वारा दिव्य प्रेरणा से श्रवण के माध्यम से प्राप्त हुआ। इसलिए इसे अपौरुषेय (जिसका कोई मानव रचनाकार नहीं) माना जाता है। यह देवताओं से सीधे प्राप्त होने वाले मंत्रों का संकलन है, जिसे ऋषियों ने सुना और फिर उसे लिपिबद्ध किया।
श्री सूक्त की रचना का प्रमुख उद्देश्य देवी लक्ष्मी की स्तुति और उनके आह्वान के माध्यम से धन और समृद्धि, ऐश्वर्य और सुख की प्राप्ति करना था। यह स्तोत्र उन मंत्रों का समूह है, जो लक्ष्मी देवी की कृपा पाने के लिए गाए जाते हैं, क्योंकि लक्ष्मी देवी को ऐश्वर्य, सौभाग्य, धन और समृद्धि की देवी माना जाता है।
श्री सूक्त की रचना के कारण:
- धन और समृद्धि की प्राप्ति: श्री सूक्त का प्रमुख उद्देश्य धन और समृद्धि की देवी लक्ष्मी का आह्वान कर उनके आशीर्वाद को प्राप्त करना है। यह मंत्र विशेष रूप से उस समय रचा गया था जब लोगों की आर्थिक स्थिति या व्यक्तिगत समृद्धि से संबंधित चुनौतियों का सामना करने के लिए देवी लक्ष्मी की कृपा की आवश्यकता थी।
- वैदिक परंपरा में देवी लक्ष्मी का महत्त्व: वैदिक काल में देवी लक्ष्मी को केवल धन और समृद्धि की देवी के रूप में ही नहीं, बल्कि संपूर्ण जीवन के लिए आवश्यक सभी संसाधनों की प्रदाता के रूप में माना जाता था। श्री सूक्त के माध्यम से उनकी महिमा का वर्णन किया गया है और उनकी कृपा से सुख, समृद्धि और शांति की कामना की जाती है।
- आध्यात्मिक और भौतिक संतुलन: श्री सूक्त का पाठ न केवल भौतिक धन और समृद्धि के लिए किया जाता है, बल्कि यह आत्मिक और मानसिक संतुलन को भी प्रकट करता है। इसके मंत्रों में धन-धान्य की प्राप्ति के साथ-साथ आत्मिक शांति और प्रसन्नता की भी प्रार्थना की जाती है।
- विपत्तियों का नाश: श्री सूक्त के माध्यम से देवी लक्ष्मी से प्रार्थना की जाती है कि वे दरिद्रता, अभाव और कष्टों को दूर करें और जीवन में सुख-शांति एवं धन और समृद्धि प्रदान करें।
श्री सूक्त वेदों में वर्णित एक अत्यंत प्रभावशाली और पवित्र स्तोत्र है, जो लक्ष्मी देवी की स्तुति और पूजा के लिए समर्पित है। यह ऋग्वेद के खंड से लिया गया है और इसमें देवी लक्ष्मी की महिमा का वर्णन किया गया है। श्री सूक्त के पाठ से धन और समृद्धि, सुख-शांति, वैभव और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है।
श्री सूक्त के पाठ का लाभ:
- धन-धान्य में वृद्धि: श्री सूक्त के नियमित पाठ से धन और समृद्धि और धन-धान्य में वृद्धि होती है। यह पाठ व्यक्ति के घर में सुख-शांति और ऐश्वर्य की प्राप्ति कराता है।
- सौभाग्य की प्राप्ति: इस स्तोत्र के पाठ से देवी लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है, जिससे जीवन में भाग्य और सौभाग्य का संचार होता है।
- विपत्तियों का नाश: श्री सूक्त के पाठ से जीवन में आने वाली आर्थिक तंगी, मानसिक तनाव और अन्य विपत्तियों से मुक्ति मिलती है।
- आत्मिक शांति: यह पाठ न केवल भौतिक समृद्धि के लिए, बल्कि आत्मिक शांति और मानसिक संतुलन प्राप्त करने में भी सहायक होता है।
- रोगों से मुक्ति: माना जाता है कि श्री सूक्त के पाठ से स्वास्थ्य में सुधार होता है और मानसिक एवं शारीरिक कष्टों से छुटकारा मिलता है।
श्री सूक्त के पाठ की विधि:
Table of Contents
श्री सूक्त का पाठ किसी भी समय किया जा सकता है, लेकिन इसे सुबह और संध्या समय में करना सबसे शुभ माना गया है। श्री सूक्त के पाठ के लिए निम्नलिखित विधि का पालन किया जा सकता है:
1. स्नान और स्वच्छता:
- सबसे पहले शुद्ध होकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- पूजा स्थान को साफ करें और देवी लक्ष्मी की प्रतिमा या चित्र को स्थापित करें।
2. आसन और आस-पास की व्यवस्था:
- पूजा करने के लिए पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठें। लाल या सफेद रंग का आसन श्रेष्ठ माना जाता है।
- पूजा स्थान पर लाल रंग का कपड़ा बिछाएं और देवी लक्ष्मी के सामने दीपक जलाएं। अगरबत्ती, धूप और सुगंधित पुष्पों का प्रयोग करें।
3. श्री सूक्त का पाठ:
- श्री सूक्त का पाठ शुरू करने से पहले लक्ष्मी जी का ध्यान करें। लक्ष्मी जी की प्रतिमा या तस्वीर के समक्ष जल, चावल, फूल आदि अर्पित करें।
- कमल के फूल या लाल गुलाब के फूल लक्ष्मी जी को बहुत प्रिय होते हैं, अतः उनका उपयोग करें।
4. मंत्र जाप:
- श्री सूक्त के प्रत्येक मंत्र का उच्चारण स्पष्ट और शुद्ध तरीके से करें। यदि हो सके तो संस्कृत के शुद्ध उच्चारण का पालन करें।
- पाठ को श्रद्धा और एकाग्रता के साथ करें।
5. नैवेद्य और आरती:
- पाठ के बाद देवी लक्ष्मी को नैवेद्य (मिष्ठान्न, फल या खीर) अर्पित करें।
- दीपक और धूप जलाकर देवी लक्ष्मी की आरती करें।
6. समापन:
- अंत में देवी लक्ष्मी से अपने घर में सुख, शांति, समृद्धि और स्वास्थ्य के लिए प्रार्थना करें।
- घर के सभी सदस्यों में प्रसाद वितरित करें।
7. विशेष समय:
- दीपावली के समय श्री सूक्त का विशेष महत्त्व है, जब यह पाठ धनतेरस से लेकर लक्ष्मी पूजन तक नियमित रूप से किया जाता है।
- शुक्रवार का दिन और पूर्णिमा तिथि भी देवी लक्ष्मी की उपासना के लिए विशेष मानी जाती है।
श्री सूक्त एक अत्यंत प्रभावशाली स्तोत्र है, जो देवी लक्ष्मी की स्तुति में रचा गया है। यह मुख्यतः वैदिक संस्कृत में है और इसमें 15 ऋचाएं (श्लोक या मंत्र) होती हैं। ये मंत्र देवी लक्ष्मी की महिमा और उनके आह्वान से संबंधित हैं। नीचे सम्पूर्ण श्री सूक्त का पाठ संस्कृत में दिया गया है:
श्री सूक्त (संस्कृत में):
- ॐ हिरण्यवर्णां हरिणीं सुवर्णरजतस्रजाम्। चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह।। हे अग्निदेव! सुवर्ण के रंग वाली, चांदी जैसी मालाओं से सुशोभित, और चन्द्रमा के समान कांति वाली लक्ष्मीजी को मेरे पास लाओ।
- तां म आवह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम्। यस्यां हिरण्यं विन्देयं गामश्वं पुरुषानहम्।। हे अग्निदेव! ऐसी लक्ष्मीजी को मेरे पास लाओ जो कभी नष्ट न हो और जिनके आने से मुझे धन, गाय, घोड़े और मनुष्य प्राप्त हो।
- अश्वपूर्वां रथमध्यां हस्तिनादप्रबोधिनीम्। श्रियं देवीमुपह्वये श्रीर्मा देवी जुषताम्।। मैं देवी लक्ष्मी का आह्वान करता हूँ, जो घोड़ों के आगे और हाथियों के मध्य होती हैं, रथ पर सवार रहती हैं, और जिनकी आवाज से हाथियों के स्वर गूंजते हैं। वे श्रीदेवी मेरे घर में निवास करें।
- कां सोस्मि हिरण्यप्राकारामर्धां ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीं पद्मे स्थितां पद्मवर्णां तामिहोपह्वये श्रियम्।। मैं लक्ष्मीजी का आह्वान करता हूँ, जो सोने की दीवारों से घिरी हुई हैं, जो अद्भुत तेजस्वी हैं, जो संतुष्ट हैं और दूसरों को तृप्त करती हैं, जो कमल में स्थित हैं और जिनका रंग कमल के समान है।
- चन्द्रां प्रभासां यशसा ज्वलन्तीं श्रियं लोके देवजुष्टामुदाराम्। तां पद्मिनीमीं शरणमहं प्रपद्ये अलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वां वृणे।। मैं उस पद्मिनी लक्ष्मी की शरण लेता हूँ, जो चंद्रमा के समान कांतिमान हैं, जो यशस्विनी हैं, और जो देवताओं द्वारा पूजित हैं। मेरी दरिद्रता का नाश हो और मैं लक्ष्मी को प्राप्त करूं।
- आदित्यवर्णे तपसोऽधिजातो वनस्पतिस्तव वृक्षोऽथ बिल्वः। तस्य फलानि तपसा नुदन्तु मायान्तरायाश्च बाह्या अलक्ष्मीः।। हे सूर्य के समान तेजस्वी लक्ष्मी! तुम तपस्या के द्वारा उत्पन्न हुई हो, तुम्हारा निवास वृक्षों और वनस्पतियों में है, विशेषकर बिल्व वृक्ष में। उसकी फलियां मेरे तप के द्वारा सारी दरिद्रता को दूर करें।
- उपैतु मां देवसखः कीर्तिश्च मणिना सह। प्रादुर्भूतोऽस्मि राष्ट्रेऽस्मिन्कीर्तिमृद्धिं ददातु मे।। मुझे लक्ष्मीजी का साथ प्राप्त हो, कीर्ति और मणियों का भंडार भी मेरे पास हो। इस राष्ट्र में मेरी कीर्ति और समृद्धि बढ़े।
- क्षुत्पिपासामलां ज्येष्ठामलक्ष्मीं नाशयाम्यहम्। अभूतिमसमृद्धिं च सर्वां निर्णुद मे गृहात्।। मैं दरिद्रता, भूख, प्यास और अशुद्धियों को नष्ट करता हूँ। मेरे घर से अभाव, असमृद्धि और दरिद्रता का नाश हो।
- गन्धद्वारां दुराधर्षां नित्यपुष्टां करीषिणीम्। ईश्वरिं सर्वभूतानां तामिहोपह्वये श्रियम्।। मैं लक्ष्मीजी का आह्वान करता हूँ, जो सुगंध से परिपूर्ण हैं, जो नित्य पुष्ट हैं, और जो सारे जीवों की अधीश्वरी हैं। वे मेरे जीवन में समृद्धि लाएं।
- मनसः काममाकूतिं वाचः सत्यमशीमहि। पशूनां रूपमन्नस्य मयि श्रीः श्रयतां यशः।। लक्ष्मीजी, मेरी इच्छाओं को पूर्ण करें, मेरे मन के संकल्प और वाणी को सत्य बनाएं। पशुधन, अन्न और कीर्ति मुझे प्राप्त हों।
- कर्दमेन प्रजाभूता मयि सम्भव कर्दम। श्रीं वासय मे कुले मातरं पद्ममालिनीम्।। हे कर्दम ऋषि! तुमसे ही यह संपूर्ण सृष्टि उत्पन्न हुई है। तुम मेरे घर में निवास करो और मेरे कुल में लक्ष्मीजी को वास कराओ।
- आपः सृजन्तु स्निग्धानि चिक्लीत वस मे गृहे। निचदेवी मातरः श्रीः श्रियं वासय मे कुले।। हे जल तत्व! तुम स्निग्धता का सृजन करो और उसे मेरे घर में भेजो। हे माता देवी लक्ष्मी! तुम मेरे कुल में निवास करो।
- आर्द्रां पुष्करिणीं पुष्टिं पिङ्गलां पद्ममालिनीम्। चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह।। हे अग्निदेव! कमल में निवास करने वाली, पुष्टिकर, पीले रंग वाली, कमल माला धारण करने वाली, चंद्रमा के समान कांतिमान और सोने के समान चमकने वाली लक्ष्मीजी को मेरे पास लाओ।
- आर्द्रां यः करिणीं यष्टिं सुवर्णां हेममालिनीम्। सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह।। हे अग्निदेव! सोने के समान चमकने वाली, सुवर्णमयी माला धारण करने वाली, सूर्य के समान कांतिमान लक्ष्मीजी को मेरे पास लाओ।
- तां म आवह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम्। यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावो दास्योऽश्वान् विन्देयं पुरुषानहम्।। हे अग्निदेव! ऐसी लक्ष्मीजी को मेरे पास लाओ, जिनके आने से मुझे प्रचुर मात्रा में स्वर्ण, गाय, नौकर, घोड़े और मनुष्य प्राप्त हों।
श्री सूक्त का समापन मंत्र:
ॐ महादेव्यै च विद्महे विष्णुपत्न्यै च धीमहि। तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात्।।
हम महादेवी का ध्यान करते हैं, जो भगवान विष्णु की पत्नी हैं। देवी लक्ष्मी हमें प्रेरणा और समृद्धि प्रदान करें।
श्री सूक्त के पाठ से जीवन में आर्थिक, मानसिक और आत्मिक समृद्धि की प्राप्ति होती है।