शारदीय नवरात्र 2024 : शारदीय नवरात्र हिंदू धर्म में एक विशेष और पवित्र पर्व है, जो देवी दुर्गा की उपासना का पर्व माना जाता है। नवरात्रि शब्द का अर्थ है ‘नौ रातें’, जिसमें माँ दुर्गा के नौ रूपों की आराधना की जाती है। यह पर्व आध्यात्मिक, धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक दृष्टिकोण से अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है।
शारदीय नवरात्र 2024 की शुरुआत 3 अक्टूबर 2024 से होगी और इसका समापन 12 अक्टूबर 2024 को होगा। यह हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण पर्व है, जिसमें देवी दुर्गा की पूजा नौ दिनों तक की जाती है। यह विशेष रूप से शरद ऋतु में आता है, इसलिए इसे शारदीय नवरात्र कहा जाता है।
नवरात्रि का ऐतिहासिक और धार्मिक महत्त्व:
पौराणिक कथा और महत्व:
- देवी दुर्गा और महिषासुर का युद्ध:
महिषासुर, एक शक्तिशाली असुर (दानव), जिसे भगवान ब्रह्मा से वरदान प्राप्त था कि वह केवल एक स्त्री द्वारा मारा जा सकता है। उसने धरती और स्वर्ग पर आतंक फैलाया। देवताओं की प्रार्थना पर, देवी दुर्गा का प्राकट्य हुआ और नौ दिनों तक महिषासुर के साथ युद्ध किया। अंततः दसवें दिन देवी ने महिषासुर का वध कर देवताओं को मुक्ति दिलाई। इसी विजय की याद में नवरात्रि और दशहरा का पर्व मनाया जाता है। - रामायण से संबंध:
शारदीय नवरात्र का संबंध भगवान राम से भी है। ऐसा माना जाता है कि भगवान राम ने देवी दुर्गा की उपासना करके शक्ति प्राप्त की और रावण के साथ युद्ध किया। दसवें दिन रावण का वध करके उन्होंने विजय प्राप्त की। इसी दिन को दशहरा के रूप में मनाया जाता है।
नवरात्रि के नौ दिनों का महत्व और देवी के नौ स्वरूप:
नवरात्रि में प्रत्येक दिन देवी दुर्गा के एक स्वरूप की पूजा की जाती है। आइए इन नौ स्वरूपों और उनके महत्व को विस्तार से समझते हैं:
- पहला दिन – शैलपुत्री:
शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में, देवी दुर्गा का यह रूप ‘शैलपुत्री’ कहलाता है। यह प्रकृति और धरती की उर्वरता का प्रतीक है। शैलपुत्री देवी को घी का भोग लगाया जाता है और यह स्वास्थ्य और सुख-समृद्धि की प्रतीक मानी जाती हैं। - दूसरा दिन – ब्रह्मचारिणी:
देवी ब्रह्मचारिणी को तपस्या और अध्यात्म की देवी माना जाता है। उन्होंने कठिन तपस्या कर भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त किया। ब्रह्मचारिणी देवी की पूजा जीवन में संयम, शांति और ज्ञान की प्राप्ति के लिए की जाती है। - तीसरा दिन – चंद्रघंटा:
यह देवी दुर्गा का साहसिक और योद्धा रूप है। इनके मस्तक पर चंद्रमा की तरह अर्धचंद्र सुशोभित रहता है, इसीलिए इन्हें ‘चंद्रघंटा’ कहा जाता है। यह रूप साहस, वीरता और बुराई के विनाश का प्रतीक है। पूजा में देवी को दूध और दूध से बनी वस्तुएँ चढ़ाई जाती हैं। - चौथा दिन – कूष्मांडा:
देवी कूष्मांडा को सृष्टि की रचयिता माना जाता है। इन्हें कद्दू (कूष्मांड) का भोग चढ़ाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि इनकी उपासना से रोग-शोक दूर होते हैं और आयु, यश और बल की प्राप्ति होती है। - पाँचवां दिन – स्कंदमाता:
देवी स्कंदमाता भगवान कार्तिकेय (स्कंद) की माता हैं। यह प्रेम, मातृत्व, और देखभाल की देवी हैं। स्कंदमाता की पूजा से संतान सुख और समृद्धि की प्राप्ति होती है। - छठा दिन – कात्यायनी:
देवी कात्यायनी को माता पार्वती का रूप माना जाता है, जिन्होंने कात्यायन ऋषि के तप से जन्म लिया था। यह विवाह और संबंधों की देवी मानी जाती हैं। अविवाहित कन्याएँ सुयोग्य वर प्राप्ति के लिए इनकी उपासना करती हैं। - सातवां दिन – कालरात्रि:
कालरात्रि देवी का रूप बुराई का नाश करने वाली शक्तिशाली देवी का है। इनका रूप भयानक है, परंतु यह अपने भक्तों के लिए अत्यंत शुभ और कल्याणकारी हैं। इनकी पूजा भय से मुक्ति के लिए की जाती है। - आठवां दिन – महागौरी:
देवी महागौरी को शुद्धता और ज्ञान की देवी माना जाता है। यह सफेद वस्त्र धारण करती हैं और इनकी पूजा से पापों का नाश होता है और आत्मा शुद्ध होती है। - नवां दिन – सिद्धिदात्री:
देवी सिद्धिदात्री सर्व सिद्धियों की दाता हैं। इन्हें 26 प्रकार की सिद्धियों का स्वामी माना जाता है। इस दिन देवी की पूजा से सभी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं।
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शारदीय नवरात्र 2024 : पूजा विधि (विस्तार से):
- कलश स्थापना (घट स्थापना):
- नवरात्रि का आरंभ कलश स्थापना से होता है। पूजा स्थल पर एक साफ स्थान पर मिट्टी के बर्तन में जौ (अंकुरित अनाज) बोते हैं।
- जल से भरे हुए कलश के ऊपर नारियल रखा जाता है। इस कलश को देवी के प्रतीक के रूप में पूजा जाता है।
- कलश पर स्वास्तिक बनाकर देवी के वस्त्र चढ़ाए जाते हैं और देवी को आमंत्रित किया जाता है।
- दुर्गा सप्तशती का पाठ:
- नवरात्रि के दिनों में दुर्गा सप्तशती का पाठ महत्वपूर्ण होता है। इसे रोजाना पढ़ना या सुनना शुभ माना जाता है।
- इसके अलावा दुर्गा चालीसा, देवी कवच और अर्गला स्तोत्र का पाठ भी किया जाता है।
- आरती और पूजा सामग्री:
- देवी की आरती सुबह और शाम दोनों समय की जाती है।
- पूजा में धूप, दीप, कपूर, चावल, लाल फूल, नारियल, कुमकुम, सिंदूर, वस्त्र आदि का प्रयोग किया जाता है।
- पूजा स्थल पर शुद्ध घी या सरसों के तेल का दीपक जलाना शुभ होता है।
- उपवास:
- नवरात्रि के दौरान अधिकांश भक्त उपवास रखते हैं। इसमें वे फल, दूध, और सेंधा नमक से बनी वस्तुओं का सेवन करते हैं।
- कुछ भक्त पूर्ण निर्जला व्रत रखते हैं, जबकि कुछ लोग एक समय भोजन करते हैं जिसे ‘एकादशी व्रत’ कहते हैं।
- कन्या पूजन:
- अष्टमी या नवमी के दिन कन्या पूजन किया जाता है। इसमें 9 कन्याओं को देवी के 9 रूपों का प्रतीक मानकर पूजा जाता है और उन्हें भोजन कराया जाता है।
- कन्या पूजन में कन्याओं को हलवा, पूड़ी, चने और मीठा खिलाने की परंपरा है। साथ ही उन्हें दक्षिणा और उपहार भी दिए जाते हैं।
- दशहरा:
नवरात्रि के समापन के बाद विजयादशमी का पर्व आता है, जिसे दशहरा कहते हैं। इस दिन रामलीला का समापन होता है, जिसमें रावण का दहन किया जाता है।
शारदीय नवरात्र 2024 में घट स्थापना (कलश स्थापना) का मुहूर्त अत्यंत महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि सही मुहूर्त में घट स्थापना करना शुभ और फलदायी माना जाता है।
शारदीय नवरात्र 2024 में घट स्थापना का शुभ मुहूर्त:
- तारीख: 3 अक्टूबर 2024, गुरुवार
- समय: सुबह 06:19 AM से 07:33 AM तक (प्रथम प्रहर)
- अवधि: 1 घंटा 14 मिनट
शारदीय नवरात्र 2024 में घट स्थापना के नियम और प्रक्रिया:
- अभिजीत मुहूर्त का ध्यान रखें:
घट स्थापना के लिए अभिजीत मुहूर्त या प्रातःकाल का समय सबसे शुभ माना जाता है। इस समय काल में देवी की स्थापना करने से विशेष फल प्राप्त होता है। - अशुभ समय से बचें:
घट स्थापना के दौरान राहुकाल, यमगंड काल, या अर्ध्यजामुहूर्त से बचना चाहिए। यह समय अशुभ माना जाता है और इसमें घट स्थापना नहीं करनी चाहिए। - स्थान की शुद्धि:
जिस स्थान पर घट स्थापना की जा रही है, वहाँ की शुद्धि का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए। स्थान को गोबर या गंगाजल से पवित्र किया जाता है।
घट स्थापना की प्रक्रिया:
- मिट्टी के बर्तन में जौ बोएं:
एक साफ मिट्टी के बर्तन में शुद्ध मिट्टी डालकर उसमें जौ बोएं। इसे भविष्य में समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। - कलश स्थापना करें:
जल से भरे हुए कलश पर आम के पत्ते रखें और उसके ऊपर नारियल रखें। कलश पर कलावा (मौली) बांधें और उस पर स्वास्तिक का चिह्न बनाएं। - संकल्प और मंत्र:
घट स्थापना करते समय संकल्प लें और देवी का आवाहन करते हुए निम्न मंत्र का उच्चारण करें: “ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे” इसके बाद देवी को फूल, अक्षत (चावल), वस्त्र, और भोग चढ़ाएं।
घट स्थापना के सही मुहूर्त और विधि का पालन करने से नवरात्रि के सभी अनुष्ठान सफलतापूर्वक संपन्न होते हैं।
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