सर्व पितृ अमावस्या 2024 में 2 अक्टूबर को पड़ रही है। यह दिन हिंदू धर्म में अत्यधिक महत्व रखता है, क्योंकि इस दिन उन सभी पूर्वजों (पितरों) की आत्माओं को श्रद्धांजलि दी जाती है, जिनका श्राद्ध या तर्पण किसी कारणवश नहीं किया जा सका होता है। इस दिन को पितृ अमावस्या या महालय अमावस्या भी कहा जाता है, और इसे श्राद्ध पक्ष की समाप्ति का प्रतीक माना जाता है।
सर्व पितृ अमावस्या का महत्व:
- पूर्वजों की आत्माओं की शांति: माना जाता है कि इस दिन पूर्वजों की आत्माएं पृथ्वी पर आती हैं और अपने वंशजों से तर्पण और श्राद्ध की आशा करती हैं। इस दिन किए गए तर्पण और पिंडदान से पूर्वजों की आत्माओं को शांति मिलती है।
- कुल का आशीर्वाद: जो लोग नियमित रूप से अपने पितरों का श्राद्ध नहीं कर पाते, वे इस दिन उनका तर्पण कर सकते हैं। माना जाता है कि इससे कुल की उन्नति होती है और परिवार में सुख-समृद्धि आती है।
- अवकाश प्राप्त आत्माओं के लिए खास दिन: जिन पितरों का मृत्यु तिथि ज्ञात नहीं होती, उनके लिए विशेष रूप से यह दिन महत्वपूर्ण होता है। इस दिन सभी पितरों को एकसाथ तर्पण करके उनकी आत्माओं की शांति के लिए प्रार्थना की जाती है।
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सर्व पितृ अमावस्या 2024 का श्राद्ध मुहूर्त पंचांग के अनुसार इस प्रकार है:
तिथि और समय:
- अमावस्या तिथि प्रारंभ: 1 अक्टूबर 2024 को रात 09:15 बजे
- अमावस्या तिथि समाप्त: 2 अक्टूबर 2024 को रात 11:49 बजे
महत्वपूर्ण मुहूर्त:
- श्राद्ध का श्रेष्ठ समय:
श्राद्ध कर्म का सबसे शुभ समय दोपहर का माना जाता है, जिसे कुतुप काल कहा जाता है।
- कुतुप काल: 2 अक्टूबर 2024 को दोपहर 11:47 बजे से 12:35 बजे तक।
- रोहिणी मुहूर्त: 2 अक्टूबर 2024 को दोपहर 12:35 बजे से 01:24 बजे तक।
- अपराह्न काल:
- यह समय श्राद्ध कर्म के लिए सबसे शुभ माना जाता है। यदि कुतुप काल में श्राद्ध नहीं कर सकें तो अपराह्न काल में श्राद्ध करना चाहिए।
- अपराह्न काल: 2 अक्टूबर 2024 को दोपहर 01:24 बजे से 03:49 बजे तक।
सर्व पितृ अमावस्या के लिए उपयुक्त समय:
पितरों के तर्पण और श्राद्ध कर्म का सबसे शुभ समय दिन के 11:47 बजे से लेकर 03:49 बजे तक रहेगा। इस दौरान किए गए कर्म पितरों की शांति के लिए अत्यंत फलदायक माने जाते हैं।
इस समय के भीतर पिंडदान, तर्पण, और ब्राह्मणों को भोजन कराने का कार्य करना चाहिए।
सर्व पितृ अमावस्या में क्या करना चाहिए:
- तर्पण और पिंडदान: इस दिन गंगा या किसी पवित्र नदी में स्नान करके अपने पितरों का तर्पण किया जाता है। यदि नदी पर जाना संभव न हो, तो घर पर या किसी पवित्र स्थान पर भी यह कर्म किया जा सकता है। पिंडदान के लिए चावल, तिल, जौ और जल का उपयोग होता है।
- श्राद्ध कर्म: पितरों की आत्मा को शांति देने के लिए ब्राह्मणों को भोजन कराना और उन्हें वस्त्र, अन्न, दान आदि देना चाहिए। इसे श्राद्ध कर्म कहा जाता है। ब्राह्मणों के अलावा गाय, कुत्ते और कौवों को भी भोजन कराना शुभ माना जाता है।
- ध्यान और प्रार्थना: इस दिन ध्यान और मंत्र जाप करके पितरों की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना की जाती है। “ॐ पितृभ्यः स्वधा नमः” का जाप विशेष रूप से प्रभावी माना जाता है।
- दान: इस दिन गरीबों और जरूरतमंदों को भोजन, वस्त्र, और अन्य आवश्यक वस्तुओं का दान करना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि दान से पितरों को संतोष मिलता है और उनके आशीर्वाद से जीवन में सुख-शांति आती है।
- विशेष पूजा: यदि संभव हो, तो पितरों की विशेष पूजा करवा सकते हैं, जिसमें उनके लिए दीप जलाना और गंगा जल चढ़ाना शामिल होता है।
ध्यान रखने योग्य बातें:
- इस दिन अपने पूर्वजों के प्रति श्रद्धा और सम्मान की भावना के साथ सभी कर्म किए जाते हैं।
- श्राद्ध और तर्पण का कार्य सूर्योदय से लेकर अपराह्न काल तक किया जाना शुभ होता है।
- इस दिन सात्विक भोजन बनाना चाहिए और मांसाहार तथा तामसिक चीज़ों से परहेज करना चाहिए।
सर्व पितृ अमावस्या पूर्वजों के प्रति आभार और सम्मान व्यक्त करने का दिन है, और इसे पूरी श्रद्धा और विधि-विधान से मनाने से परिवार को पितरों का आशीर्वाद मिलता है।
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