गरुड़ (Garud)की जन्म कथा भारतीय धार्मिक ग्रंथों में विशेष स्थान रखती है। गरुड़ भगवान विष्णु के वाहन और उनके प्रमुख भक्त माने जाते हैं। उनके जन्म और कार्यों की कथा हमें अनेक पुराणों में मिलती है। यह कथा साहस, भक्ति, और कर्तव्यनिष्ठा का प्रतीक है। यहाँ गरुड़ के जन्म की कथा विस्तार से प्रस्तुत है:
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कश्यप ऋषि और उनकी पत्नियाँ
कश्यप ऋषि की दो प्रमुख पत्नियाँ थीं, विनता और कद्रू। कद्रू ने सौ नागों को जन्म दिया जबकि विनता ने दो अंडे दिए। कद्रू की संतानें जल्दी पैदा हो गईं, लेकिन विनता के अंडों से संतानें जन्म लेने में समय लग रहा था। विनता धैर्य नहीं रख सकीं और उन्होंने एक अंडे को समय से पहले ही फोड़ दिया। उस अंडे से अरुण का जन्म हुआ, जो अर्धविकसित थे। अरुण ने अपनी माँ को यह कहते हुए शाप दिया कि वह अपने दूसरे अंडे से संतान के पूर्ण विकास तक दासी बनी रहेंगी।
शर्त और दासता
एक बार कद्रू और विनता में उच्चैःश्रवा नामक घोड़े के रंग को लेकर विवाद हुआ। कद्रू ने कहा कि घोड़े की पूंछ काली है, जबकि विनता ने कहा कि वह सफेद है। दोनों ने शर्त लगाई कि हारने वाली बहन विजेता की दासी बन जाएगी। कद्रू ने अपने नाग पुत्रों को उच्चैःश्रवा की पूंछ पर लपेटने का आदेश दिया, जिससे वह काला दिखाई देने लगा। विनता शर्त हार गईं और कद्रू की दासी बन गईं।
गरुड़ (Garud) का जन्म
समय बीतने के साथ, विनता के दूसरे अंडे से गरुड़ ( का जन्म हुआ। गरुड़ का जन्म अत्यंत तेजस्वी और शक्तिशाली रूप में हुआ। उनका तेज इतना प्रबल था कि तीनों लोक उनकी चमक से आलोकित हो उठे। उनकी शक्ति और पराक्रम को देखकर देवताओं ने उनकी स्तुति की।
माँ की मुक्ति के लिए यात्रा
गरुड़ ने जब अपनी माँ को कद्रू की दासी के रूप में देखा, तो उन्होंने अपनी माँ को मुक्त कराने का निश्चय किया। नागों ने कहा कि यदि गरुड़ स्वर्ग से अमृत लाकर उन्हें दें, तो वे विनता को मुक्त कर देंगे। अपनी माँ की मुक्ति के लिए गरुड़ ने इस कठिन कार्य को करने का निर्णय लिया और अमृत की खोज में निकल पड़े।
अमृत की प्राप्ति
गरुड़ (Garud) ने स्वर्ग में जाकर अमृत को प्राप्त किया। उन्होंने इन्द्र और अन्य देवताओं से युद्ध किया और अपनी अद्वितीय शक्ति से सभी को पराजित किया। उनकी शक्ति को देखकर भगवान विष्णु ने उन्हें अपना वाहन बनने का प्रस्ताव दिया। गरुड़ ने यह स्वीकार कर लिया, परन्तु उन्होंने नागों को दिया वचन भी निभाया। उन्होंने अमृत को नागों के पास ले जाकर उन्हें दे दिया, लेकिन नागों को चेताया कि वे अमृत का सेवन न करें, केवल उसकी पूजा करें। नागों ने गरुड़ की बात मानी।
विनता की मुक्ति
गरुड़ ने अमृत देकर अपनी माँ विनता को दासता से मुक्त किया। इस प्रकार उन्होंने अपने कर्तव्य को निभाया और अपनी शक्ति और भक्ति से सभी को प्रभावित किया।
गरुड़ की भक्ति और भूमिका
गरुड़ की कथा भगवान विष्णु के प्रति उनकी अनन्य भक्ति और समर्पण को दर्शाती है। वे विष्णु के वाहन के रूप में उनके साथ सदैव रहते हैं और उनकी सेवा में समर्पित रहते हैं। गरुड़ का प्रतीकत्व शक्ति, भक्ति, और कर्तव्यनिष्ठा का आदर्श है। उनकी कथा हमें यह सिखाती है कि किसी भी कठिनाई को अपने साहस और समर्पण से पार किया जा सकता है।
उपसंहार
गरुड़ की पौराणिक कथा न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह हमें जीवन में शक्ति, समर्पण और कर्तव्यपालन के महत्वपूर्ण गुणों का महत्व भी समझाती है। गरुड़ की कथा भारतीय पौराणिक साहित्य का एक महत्वपूर्ण अंग है और उनकी भक्ति और साहस की कथा आज भी प्रेरणा स्रोत बनी हुई है।
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