Shailputri: माँ शैलपुत्री की पौराणिक कथा भारतीय संस्कृति और धार्मिकता में महत्वपूर्ण स्थान रखती है। वह देवी दुर्गा के नौ रूपों में से प्रथम रूप हैं और उनकी पूजा नवरात्रि के प्रथम दिन की जाती है। माँ शैलपुत्री की कथा उनके पूर्व जन्म से आरम्भ होती है, जब वह राजा दक्ष की पुत्री सती थीं। सती और भगवान शिव सती का विवाह भगवान शिव से हुआ था। राजा दक्ष, जो सती के पिता थे, भगवान शिव से नाराज थे। उन्होंने एक बड़ा यज्ञ किया और सभी देवी-देवताओं को आमंत्रित किया, लेकिन शिव और सती को आमंत्रित नहीं किया। सती ने जब यह सुना, तो वह अपने पति शिव के मना करने के बावजूद अपने पिता के यज्ञ में गईं। वहाँ पहुँचकर उन्होंने देखा कि यज्ञ में उनके पति का अपमान किया जा रहा है और उनके लिए कोई आसन नहीं रखा गया है। इस अपमान से दुखी होकर सती ने यज्ञ कुंड में कूदकर अपने प्राण त्याग दिए। माँ शैलपुत्री( Shailputri) का जन्म सती के इस बलिदान के बाद, भगवान शिव ने तांडव नृत्य किया और सती के शरीर को उठाकर पूरे ब्रह्मांड में घूमने लगे। भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को टुकड़े-टुकड़े कर दिया, जिससे वह शांत हो सके। इन टुकड़ों से 51 शक्तिपीठों की स्थापना हुई। सती ने फिर से हिमालय के राजा हिमावन और रानी मैनावती के घर जन्म लिया। इस जन्म में उनका नाम शैलपुत्री पड़ा, जिसका अर्थ है ‘पर्वत की पुत्री’। माँ शैलपुत्री को पार्वती और हेमवती भी कहा जाता है। विवाह और तपस्या अपने पिछले जन्म की स्मृतियों के साथ, शैलपुत्री ने भगवान शिव को पुनः प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या की। उन्होंने कठोर वनवास किया और भगवान शिव की आराधना में लीन रहीं। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया और इस प्रकार शैलपुत्री पुनः पार्वती बनकर शिव की संगिनी बन गईं। माँ शैलपुत्री (Shailputri) की स्वरूप माँ शैलपुत्री का वाहन वृषभ (बैल) है, इसलिए उन्हें वृषारूढ़ा भी कहा जाता है। उनके दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएँ हाथ में कमल का फूल है। यह स्वरूप प्रकृति की समृद्धि और शांति का प्रतीक है। त्रिशूल शक्ति और साहस का प्रतीक है, जबकि कमल जीवन के आध्यात्मिक और पवित्र पक्ष को दर्शाता है। धार्मिक महत्त्व माँ शैलपुत्री की पूजा नवरात्रि के प्रथम दिन की जाती है। इस दिन भक्तगण अपने मन और शरीर को शुद्ध करके माँ की पूजा करते हैं। ऐसा माना जाता है कि माँ शैलपुत्री की कृपा से व्यक्ति को जीवन में स्थिरता, शांति और संतुलन प्राप्त होता है। उनके आशीर्वाद से साधक को आध्यात्मिक और मानसिक शांति मिलती है और वह जीवन के कष्टों से मुक्त होता है। कथा का सामाजिक और आध्यात्मिक संदेश माँ शैलपुत्री की कथा से कई महत्वपूर्ण संदेश मिलते हैं। सबसे प्रमुख संदेश है नारी शक्ति का सम्मान और उसका आत्म-सम्मान। सती के रूप में उन्होंने अपने सम्मान के लिए प्राण त्याग दिए और शैलपुत्री के रूप में उन्होंने कठोर तपस्या के माध्यम से अपने उद्देश्य को प्राप्त किया। यह दर्शाता है कि नारी में अद्भुत शक्ति और संकल्प होता है। इसके अलावा, यह कथा समर्पण और भक्ति का भी संदेश देती है। शैलपुत्री की भगवान शिव के प्रति अटूट भक्ति और तपस्या यह सिखाती है कि सच्चे प्रेम और समर्पण से किसी भी कठिनाई को पार किया जा सकता है। पूजन विधि नवरात्रि के पहले दिन, भक्त माँ शैलपुत्री की पूजा विशेष रूप से करते हैं। इस दिन घर को साफ-सुथरा करके माँ की मूर्ति या चित्र स्थापित किया जाता है। एक कलश की स्थापना की जाती है और उसमें जल, सुपारी, फूल और सिक्के डालकर उसे पवित्र किया जाता है। इसके बाद माँ शैलपुत्री की आरती और मंत्रोच्चारण करके उनकी पूजा की जाती है। मंत्र: इस मंत्र का जाप करने से भक्तों को माँ की कृपा प्राप्त होती है और उनकी सभी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं। उपसंहार माँ शैलपुत्री (Shailputri) की कथा भारतीय धार्मिकता और संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा है। उनकी पूजा और आराधना से भक्तगण अपनी समस्याओं से मुक्ति पाते हैं और जीवन में शांति और संतुलन प्राप्त करते हैं। यह कथा हमें यह सिखाती है कि किस प्रकार समर्पण, भक्ति और नारी शक्ति को सम्मान देकर हम अपने जीवन को सफल और सुखमय बना सकते हैं। माँ शैलपुत्री के दिव्य आशीर्वाद से हम सभी को जीवन में स्थिरता, समृद्धि और आध्यात्मिक शांति प्राप्त हो। यह भी पढ़ें I You Tube Channel को Subscribe अवश्य करें I
नवरात्रि में कैसे करें माँ दुर्गा को प्रसन्न ?
सनातन धर्म में नवरात्रि एक प्रमुख पर्व है जो माता दुर्गा की पूजा और महायज्ञ के माध्यम से मनाया जाता है। यह पर्व भारतीय संस्कृति में विशेष महत्व रखता है नवरात्रि का पर्व सनातन धर्म में माँ दुर्गा की पूजा के रूप में माना जाता है और इसे भारत भर में उत्साह से मनाया जाता है। यह पर्व आमतौर पर चैत्र नवरात्रि और शरद नवरात्रि में मनाया जाता है। नवरात्रि के दौरान, लोग नौ दिनों तक निराहार व्रत रखते हैं और देवी दुर्गा की पूजा करते हैं। प्रतिदिन अलग-अलग रूपों में देवी की पूजा की जाती है, जैसे कि शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्माण्डा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री। ये नौ रूप माता दुर्गा के नौ अवतारों को प्रतिनिधित्व करते हैं और उनकी शक्ति और सामर्थ्य की पूजा की जाती है। नवरात्रि का महत्व यह है कि इसके माध्यम से हम मां दुर्गा की भक्ति करते हैं और उनकी कृपा और आशीर्वाद को प्राप्त करते हैं। इस पर्व के माध्यम से हम सात्त्विकता, शक्ति, और निर्मलता की प्राप्ति का प्रयास करते हैं, जो हमें धार्मिक और आध्यात्मिक उत्थान में सहायता करता है। इस दौरान, लोग मंदिरों में जाकर देवी की मूर्ति की पूजा करते हैं, भजन की गायन करते हैं और महिलाएं विशेष रूप से नवरात्रि के नौ दिनों के उपासना करती हैं। यह पर्व धार्मिक और सामाजिक आयोजनों का भी अवसर होता है, लोग बड़े- बड़े पंडालों और मंदिरों में भी भव्य प्रवचन, कथाएँ और संगीत समारोह का आयोजन करते हैं जिससे लोगों को एक-दूसरे के साथ जुड़ने का अवसर प्रदान करता है। सामाजिक रूप से, नवरात्रि का उत्सव लोगों को एक साथ जोड़ता है और सामूहिक रूप से उत्साह, सामाजिक सद्भाव, और धार्मिक भावना को बढ़ाता है। नवरात्रि के अंत में, दशमी के दिन या दुर्गा दशमी के रूप में, लोग माँ दुर्गा के प्रति अपना आभार और भक्ति प्रकट करते हैं। इस दिन भजन की ध्वनि, आरती की धुन और मंदिरों में ध्वजारोहण की ध्वनि सुनाई जाती है। इस प्रकार, नवरात्रि का पर्व माँ दुर्गा की पूजा और भक्ति का एक महान उत्सव है जो धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। नवरात्रि में जौ बोने का विधान है, जौ बोने के लिए ऐसा पात्र लें जिसमें मिट्टीभरने के बाद कलश रखने के लिए जगह बच जाए, एक साफ स्थान पर एक पाटी या चौकी लगाकर उस पर लाल कपडा बिछाकर इस पात्र को रख देना चाहिए, अब एक मिट्टी का कलश लेकर उसे अच्छे से साफ़ करके, जिस पात्र में जौ बोये गए हैं उसके ऊपर रख दें और कलश को शुद्ध जल से भर दें और थोडा गंगाजल भी मिला दें, कलश के गले में मौली बांधकर रोली से स्वस्तिक बना दें। कलश के अंदर फूल, इत्र, साबुत सुपारी, दूर्वा डाल दें। पाँच आम या अशोक के पत्ते लेकर कलश में डालकर कलश को किसी पात्र से ढक दें और इस पात्र में अक्षत भरकर इसके ऊपर एक नारियल लाल कपडे में लपेटकर रख दें। ध्यान रहे नारियल का मुख आपकी तरफ होना चाहिए। अब माँ दुर्गा की प्रतिमा या फोटो को चौकी पर स्थापित करें, माँ का आह्वान करें, दीप, धूप, फल- फूल, नैवेद्य समर्पित करें, माँ से अपने सभी कष्ट हरने और सभी मनोकामनाएं पूरी करने का निवेदन करें, इसके पश्चात आरती करें और प्रसाद वितरित करें। इन नौ दिनों में दुर्गा चालीसा का पाठ करने से मानसिक शांति मिलती है। इसलिए माँ दुर्गा चालीसा का पाठ अवश्य ही करना चाहिए। हमारे फेसबुक पेज से भी जुड़िये
Shri Durga Chalisa Path: श्री दुर्गा चालीसा पाठ से माँ दुर्गा होंगी प्रसन्न
माँ दुर्गा का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए प्रतिदिन कीजिये श्री दुर्गा चालीसा पाठ Durga Chalisa : श्री दुर्गा चालीसा पाठ – श्री दुर्गा चालीसा के नित्य पाठ से माँ दुर्गा आपके सभी कष्टों का निवारण कर आप पर विशेष कृपा करेंगी || श्री दुर्गा चालीसा || नमो नमो दुर्गे सुख करनी।नमो नमो दुर्गे दुःख हरनी॥ निरंकार है ज्योति तुम्हारी।तिहूं लोक फैली उजियारी॥ शशि ललाट मुख महाविशाला।नेत्र लाल भृकुटि विकराला॥ रूप मातु को अधिक सुहावे।दरश करत जन अति सुख पावे॥ तुम संसार शक्ति लै कीना।पालन हेतु अन्न धन दीना॥ अन्नपूर्णा हुई जग पाला।तुम ही आदि सुन्दरी बाला॥ प्रलयकाल सब नाशन हारी।तुम गौरी शिवशंकर प्यारी॥ शिव योगी तुम्हरे गुण गावें।ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें॥ रूप सरस्वती को तुम धारा।दे सुबुद्धि ऋषि मुनिन उबारा॥ धरयो रूप नरसिंह को अम्बा।परगट भई फाड़कर खम्बा॥ रक्षा करि प्रह्लाद बचायो।हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो॥ लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं।श्री नारायण अंग समाहीं॥ क्षीरसिन्धु में करत विलासा।दयासिन्धु दीजै मन आसा॥ हिंगलाज में तुम्हीं भवानी।महिमा अमित न जात बखानी॥ मातंगी अरु धूमावति माता।भुवनेश्वरी बगला सुख दाता॥ श्री भैरव तारा जग तारिणी।छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी॥ केहरि वाहन सोह भवानी।लांगुर वीर चलत अगवानी॥ कर में खप्पर खड्ग विराजै।जाको देख काल डर भाजै॥ सोहै अस्त्र और त्रिशूला।जाते उठत शत्रु हिय शूला॥ नगरकोट में तुम्हीं विराजत।तिहुँलोक में डंका बाजत॥ शुम्भ निशुम्भ दानव तुम मारे।रक्तन बीज शंखन संहारे॥ महिषासुर नृप अति अभिमानी।जेहि अघ भार मही अकुलानी॥ रूप कराल कालिका धारा।सेन सहित तुम तिहि संहारा॥ परी गाढ़ सन्तन पर जब जब।भई सहाय मातु तुम तब तब॥ आभा पुरी अरु बासव लोका।तब महिमा सब रहें अशोका॥ ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी।तुम्हें सदा पूजें नर-नारी॥ प्रेम भक्ति से जो यश गावें।दुःख दारिद्र निकट नहिं आवें॥ ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई।जन्म-मरण ताकौ छुटि जाई॥ जोगी सुर मुनि कहत पुकारी।योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी॥ शंकर आचारज तप कीनो।काम क्रोध जीति सब लीनो॥ निशिदिन ध्यान धरो शंकर को।काहु काल नहिं सुमिरो तुमको॥ शक्ति रूप का मरम न पायो।शक्ति गई तब मन पछितायो॥ शरणागत हुई कीर्ति बखानी।जय जय जय जगदम्ब भवानी॥ भई प्रसन्न आदि जगदम्बा।दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा॥ मोको मातु कष्ट अति घेरो।तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो॥ आशा तृष्णा निपट सतावें।रिपु मुरख मोही डरपावे॥ शत्रु नाश कीजै महारानी।सुमिरौं इकचित तुम्हें भवानी॥ करो कृपा हे मातु दयाला।ऋद्धि-सिद्धि दै करहु निहाला।। जब लगि जियऊं दया फल पाऊं।तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊं॥ श्री दुर्गा चालीसा जो कोई गावै।सब सुख भोग परमपद पावै॥ देवीदास शरण निज जानी।करहु कृपा जगदम्ब भवानी॥ ॥इति श्रीदुर्गा चालीसा सम्पूर्ण॥ माँ दुर्गा सभी भक्तों पर कृपा करती हैं, जो मनुष्य माँ दुर्गा का नाम नियमित रूप से लेता है उसके सभी दुखों का नाश करती हैं| प्रातः जल्दी उठकर स्नानादि से निवृत्त होकर माँ दुर्गा की प्रतिमा या फोटो के सामने देशी घी का दीपक जलाकर, लाल रंग के फूल माँ को समर्पित करके 11 बार श्री दुर्गा चालीसा पाठ नियमित करने से माँ दुर्गा प्रसन्न होती हैं और मनोवांछित फल प्रदान करती हैं| माँ दुर्गा की आरधना सच्चे मन और पूरी श्रद्धा के साथ करनी चाहिए, पवित्रता का व्रत धारण करना चाहिए, इस चालीसा में सभी दुखों का नाश करने की शक्ति है माँ दुर्गा चालीसा का पाठ करने मात्र से मनुष्य सभी पापों से मुक्त हो जाता है| श्री दुर्गा चालीसा पाठ ध्यान, श्रद्धा, और भक्ति के साथ करें तथा माँ दुर्गा की कृपा और आशीर्वाद को प्राप्त करें। नवरात्रि के पावन पर्व में माँ दुर्गा चालीसा का नियमित पाठ करें और माँ की कृपा प्राप्त करें।
माँ दुर्गा के 108 नामों के जाप से मिलेगी समस्त दुखों से मुक्ति
माँ दुर्गा के 108 नाम माँ दुर्गा के 108 नाम इस प्रकार हैं:- माँ दुर्गा समस्त कष्टों को हरने वाली हैं, अपने भक्तों पर कृपा करने वाली हैंI जो मनुष्य सच्चे मन से माँ दुर्गा के इन नामों का जाप करता है और हमेशा माँ दुर्गा का भजन पूजन करता है सभी विपत्तियों से मुक्त होकर सुखी जीवन व्यतीत करता हैI यह भी जानिए:-